बुधवार 27 अगस्त 2025 - 08:16
भारतीय धार्मिक विद्वानों का परिचय | अल्लामा गुलशन अली जौनपुरी

हौज़ा /पेशकश: दनिश नामा ए इस्लाम, इन्टरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर दिल्ली

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, जौनपुर शहर जिसे "शीराज़-ए-हिंद" कहा जाता है, हमेशा से इल्म, दीन और अदब का मरकज़ रहा है। इस ज़रख़ेज़ ख़ित्ते ने ऐसे ऐसे नामवर औलमा पैदा किए जिनका इल्मी फ़ैज़ दूर दूर तक फैला। इनहीं रौशन चेहरों में एक नुमायां नाम अल्लामा सैयद गुलशन अली जौनपुरी का है, जिन्होंने ना सिर्फ़ इल्मी और दीनी ख़िदमात अंजाम दीं बल्कि अपनी सियासी बसीरत से भी पहचान बनाई।

अल्लामा गुलशन अली मिंबर व मेहराब तक ही महदूद नहीं थे, बल्कि हुकूमत, रियासती उमूर और अदालती निज़ाम पर भी गहरी नज़र रखते थे। इसी लिए उन्होंने दीन की ख़िदमत के साथ साथ सियासी, समाजी और अदालती मैदानों में भी मोअस्सिर किरदार अदा किया।

आप सन 1799 ई. में ज़िला जौनपुर के क़स्बा सूँडी में पैदा हुए। इब्तेदाई तालीम मौलवी ज़ाकिर अली और मौलवी सैयद मोहम्मद अली से हासिल की, बाद अज़ां मौलवी मोहम्मद एवज़ से औसत दर्जे की तालीम मुकम्मल की, सन 1230 हिजरी में इल्मी जुस्तजू उन्हें लखनऊ ले गई जहाँ मौलवी वलीयुल्लाह हनफ़ी से मंतिक़ व फ़लसफ़ा, मौलाना मिर्ज़ा काज़िम अली से फ़िक़्ह व उसूल, और मौलाना हुसैन अली ख़ाँ से हदीस व तफ़सीर पढ़ी। तिब् की तालीम ग़ुलामे इमाम ज़ामिन से हासिल की, जो उस वक़्त के नामवर हकीम थे।

आपने आयतुल्लाह सैयद दिलदार अली "ग़ुफ़रानमआब" और आयतुल्लाह सैयद मोहम्मद नक़वी "सुलतानुल-औलमा" जैसे बलंद पाया औलमा से भी इस्तेफ़ादा किया। इल्म की तशनगी ने आपको ईरान व इराक़ पहुँचाया, जहाँ आपने सात बरस नजफ़ व कर्बला में गुज़ारे। इस सफ़र से आपकी इल्मी शख़्सियत में मजीद निखार आया।

इराक़ से वापसी के बाद आपने तदरीस का सिलसिला शुरू किया और बेशुमार शागिर्द तैयार किए, जिनमें बहुत से मशहूर औलमा और होकमा शामिल हैं। तिब में महारत के बाद दिल्ली में हकीम फतह अली ख़ाँ के मतब में सात साल मुआलिज के तौर पर मिल्लत की ख़िदमत की। सन 1235 हिजरी में वतन वापस आए और बनारस के महाराजा की जानिब से मुनसिफ़ और तहसीलदार के ओहदे पर पचास बरस तक ख़िदमात अंजाम दीं। अदलिया, नज़्म व नस्क़ और फ़लाह-ए-आम्मा के शोबों में उनकी ख़िदमात क़ाबिले क़दर हैं।

महाराजा बनारस ने एक तक़रीब में खुद ऐतराफ़ किया कि उनके वालिद के मुंशी, जनाब गुलशन अली, ने रियासत को मज़बूत बनाया और अवामी सतह पर गराँ क़द्र ख़िदमात अंजाम दीं।

अल्लामा गुलशन अली सन 1267 हिजरी में अतेबात-ए-आलिया की ज़ियारत की ग़रज़ से सफ़र पर रवाना हुए। ज़ियारात से वापसी पर आपकी शोहरत इतनी बढ़ी कि यमन के शहरे हुदैदा का हाकिम, तिब् सीखने की ग़रज़ से आपका शागिर्द बन गया। मदीना मुनव्वरा के मुअजज़्ज़ेज़ीन ने भी आप से उलूम-ए-अदब में रहनुमाई हासिल की। ये इस बात का सुबूत है कि आपकी इल्मी शोहरत अरब व अजम तक फैली हुई थी।

अल्लामा गुलशन अली ने मसरूफ़ियात के बावजूद कई किताबें भी तस्नीफ़ कीं। उनकी अहम तस्नीफ़ात में हवाशी-ए कुतुब-ए-दर्सी (अरबी), नसीहत नामा (तरजुमा अहादीस), जवाब बासवाब रद्दे अर्ज़-ए-नेक, और किफ़ायतुल हिसाब फी शरहे खुलासातुल हिसाब शामिल हैं। ये कुतुब आज भी अहले इल्म के लिए रहनुमा हैं।

अल्लाह ने आपको एक फ़र्ज़ंद अता किया जो मौलवी मोहम्मद हसन के नाम से पहचाना गया। आपने अपने फ़र्ज़ंद को ज़ेवर-ए-इल्म व अदब से आरास्ता किया, जो बाद में तक़वा और इल्म में अपने वालिद का सच्चा वारिस साबित हुआ।

आख़िरकार ये इल्म व बसीरत का रौशन चराग़ सन 1874 ई. को बनारस में ख़ामोश हो गया। अल्लामा का पैकर-ए-ख़ाक़ी आपके वतन सूँडी लाया गया और नमाज़े जनाज़ा के बाद मौरूसी क़ब्रिस्तान में सुपुर्दे ख़ाक किया गया।

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